कौन हूँ मैं ?
दुर्गा, काली, सीता का अभिमान मैं,
या किसी के पैर की जुती का स्थान मैं।
कौन हूँ मैं ?
कवि की रचना का फूल मैं,
या पैदा होने से पहले कुचली, वो कली मैं।
कौन हूँ मैं ?
चाँद जिस खूबसूरती से जले वो जलन मैं,
या चाँद जैसा गोरेपन पाने की तड़पन मैं।
कौन हूँ मैं ?
हर कामयाब पुरुष के पीछे खड़ी जो वो स्त्री मैं,
या कामयाब पुरुष के पीछे पड़ी वो स्त्री मैं।
कौन हूँ मैं ?
खुद सजना, परिवार को सँवारना, अच्छे घर की पहचान मैं,
या खुद सजना और मैनीक्योर, पैडीक्योर का दर्द सहना,
रिसेप्शन में नुमाइश का सामान मैं।
कौन हूँ मैं ?
तुम्हारी सोच की परिधि से आगे की सोच हूँ मैं,
हाँ, तुम्हारी तरह ही आम हूँ मैं।
कौन हूँ मैं ?
इन प्रश्नों के बीच जीने की चाहत हूँ मैं।
आम जिंदगी, आम चाहते ही हैं
जिसके महंगे ख़्वाब वो आम सी नारी हूँ मैं।
आम हूँ मैं।
न मैं काली हूँ, न दुर्गा सा तेज हूँ मैं,
बस सबकी तरह, इनको पूजने वाली हूँ मैं।
आम हूँ मैं।
किसी की जूती का सेज नहीं मैं,
पाँव धरा तो काँटों सी चुभन हूँ मैं।
आम हूँ मैं।
किसी कवि की रचना का कोई फूल नहीं,
पूरी की पूरी रचना ही हूँ मैं।
आम हूँ मैं।
जग में जो न आ पाई वो कलि नहीं,
जग जिस ख़ुशी से वंचित हुआ, वो ख़ुशी हूँ मैं।
आम हूँ मैं।
चाँद जले तो जलने दो,
अपने सांवले रंग पर इतराती मैं।
आम हूँ मैं।
न किसी के पीछे खड़ी, न किसी के पीछे पड़ी,
बस अपना मुकाम बनाने की जिद पे अड्डी हूँ मैं,
आम हूँ मैं।
सजती हूँ, सवारती हूँ अपने आप पे मरती मैं,
न घर पे, न बाहर कहीं पे भी ताड़न की कोई चीज़ नहीं मैं।
- बस आम हूँ मैं।