Suno Hindi Poem | सुनो : कविता |
Suno Hindi Poem | सुनो : कविता . मैं सारी मेल कम्युनिटी की जिम्मेदारी तो नहीं लेता पर अमूमन लड़कों का कमरा अस्तव्यस्त देखा है मैंने। हाँ कुछ लड़कियों का भी पर वो गिन्ने चुन्ने ही थे। मेरा खुद का कमरा काफी अस्तव्यस्त है। जगह – जगह चीज़ें पड़ी रहती हैं।
ये कविता मेरे कमरे से ही प्रेरित है। पर किसी पे तंज़ नहीं बल्कि किसी के इंतज़ार की कहानी कह रही है। कैसे वो आती है घर को सज़ाके दिल के अंदर कुछ दीये से जलादेती है। किरदार डर में है कि कहीं वो जो सोच रहा है अगर ऐसा न हुआ तो वो हसीं भ्रम टूट जाएगा। इसीलिए वो बार- बार उस लड़की को अपने कमरे में आने से रोक रहा है- टोक रहा है ।
Suno Hindi Poem | सुनो : कविता |
सुनो !
जरा संभलकर आना
बेतरतीब हूँ बेतरतीब सा मेरा कमरा।
बिखरी मिलेंगी किताबें,
कपडे, कागज कलम , बिल्कुल मेरी तरह।
सुनो !
कुछ छूना मत,
तुम एक लड़की हो और मुझे पता है
संसार के लगभग हर समाज ने
तुम्हे सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी होगी
“चीज़ें तरतीब से रखना और घर सम्भालना “
ये जो आम बात है न तुम्हारे लिए
ख़ास बनजाती है हम लकड़ों के लिए।
कहीं मैं भी इसे फ़िक्र या प्यार न समझ बैठूं
कोई अरमान न बुन बैठूं ,
अगर भ्रम टुटा
तो कहीं
हर तरतीब से रखी चीज़ों से
भरोसा न उठा बैठूं।
सुनो !
भ्रम टूटेगा तो नहीं न !