Diwali: Hindi Poems
Diwali: Hindi Poems is a collection of Kavita and liners by Kagaj Kalam.
Diwali: Hindi Poems
क्या जवाब दूँ , भोलेपन में पूछे गए सवाल का
जो अक्सर “मेरा खाली पड़ा अँधेरे में डूबा गाँव ” मुझसे पूछता है।
शहर में बिजली है तो दिवाली में दीये क्यों ???????………
मैंने भी कह दिया:
तेरी बहुत याद आती थी न
और वो लाटा ख़ुशी-ख़ुशी मान भी गया।
बस इतना ही काफी है
उसे बेवकूफ बनाकर अँधेरे में धकेलने के लिये।
Pataal Waale Gharon Ki Diwali:
वो पहाड़ों के पटाल वाले घर याद हैं न
न जाने उन बदक़िस्मतों की दिवाली आएगी तो आएगी कब।
Diwali Hindi Poem:
न तो तुम राम हो,
न ही तुम्हे कोई चौदह वर्ष का वनवास मिला।
तो इतने साल क्यों लग जाते हैं मेरे बच्चों गांव लौटने में।
चलो जब भी आओगे, दिवाली तभी मनालेंगे।
Diwali Kavita
वर्षों
से दीया और पिता
अपनी दीवाली कुछ ऐसे मनातें रहे हैं
कि जलकर और खुद के तले अँधेरा कर,
अपनों की राहों को रोशनी से भरते रहे हैं।
Diwali | Hindi Poems | Quotes
मुकमल हो गयी
उन दीयों की दीवाली
जो जग को रास्ता दिखने वाले
अयोध्या के कुल-दीपक को,
रास्ता दीखाने के लिए जले जा रहे हैं।
Hindi Kavita On Diwali
क्या जवाब मिलता था बचपन में जब तुम पूछते थे :
पापा ये दिवाली क्यों मनाते हैं
” मेरे बच्चे इस दिन भगवान श्री राम,
चौदह वर्ष बाद अपने घर अयोध्या लौटे थे।”
आज वही बाप दिवाली फोन पे वही सवाल पूछता है
और बच्चे वही जवाब।
शायद बचपन में बस याद कर लिया था
पर समझ नहीं पाए थे जवाब
कि अपने बच्चे के घर आने की खुशी में मानते हैं “दिवाली “
Hindi Quotes On Diwali
दिवाली आरही है चलो घर साफ़ करते हैं,.
Kavita On Diwali
चलो दिवाली मेरे घर में मानते हैं,
कहते हुए मेरा बेटा अपने दोस्तों के साथ एक कमरे में लॉक हो गया।
सबके सब लगे फोन निकलने तेज़ी से लगे अंगुलियां चलाने,
गन लेले, सामने से, पॉइंट लेले। ….. कहते हुए लगे चिल्लाने।
इनकी ऑनलाइन वाली इस दिवाली को चलो बाहर की हवा खिलाएं,
असली दिवाली क्या होती है थोड़ा सा तो उनको बतलायें।
“छूटते ही वो बोलने लगे अच्छा वो दिवाली,
जिसमें आपकी जनरेशन ने साँस तक लेने के लिए हवा तक छोड़ी नहीं,
मरीज़ों, जानवरों, बुजर्गों की जो जान लेले, उन आवाजों से कभी परहेज किया नहीं,
अब तो बस ये दूषित करने वाले मौत के सामान बाज़ारों में मिलते नहीं,
किताबों के पन्नो से बाहर अब उतरते नहीं। “
क्या समझाऊँ,
इन वक़्त से पहले हुए समझदारों को कि
कभी हम भी अक्ल के कच्चे थे,
पूरी तरह पक्के नहीं, हम भी कभी बच्चे थे।
बात पलट बोला मैं,
ये टॉपिक कोई दूसरा है कभी और बात करेंगे,
दिवाली हम कैसे मानते थे बस इस पे बात करेंगे।
” कुछ यूं हम बचपन में दिवाली मानते थे
कि बेवकूफियों की साड़ी हदें पार कर जाते थे,
पता नहीं, उस बेवकूफी में भी क्या ऐसा जूनून था,
कि आज तक की दिवाली में कहाँ वो बचपन वाला सुकून था। “
” बहादुरी समझके, हम बेवकूफियाँ बेहिसाब किया करते थे,
यूँ ही नहीं हम, हाथों में मुर्गा छाप जलाया करते थे। “
रॉकेटों की लड़ाई यहाँ आम बात होती
किसी के परदे जलें या घर में जाके फटे
हमें कहाँ किसी बात की फ़िक्र होती।
चरखी की घुमाई पे हम सब नाचते, शोर मचाते
अनार से हाथ जलाकर भी, हम उफ़ तक नहीं कर पाते
कहीं कोई मजा न छूट जाये, तभी तो घर में भी ये नहीं बता पाते।
बस आज तक समझ नहीं पाया,
वो साँप की बट्टी का मजा,
न फूटता, न उड़ता, न कोई रौशनी दिखाता
पर जलते ही, उसका रख बन जाना,
पता नहीं क्यों मन को बहुत भाता।
क्या तुमने सुतली बेम पर किसी बर्तन को उल्टा रखके फोड़ा है,
कानो में हाथ लगाकर बस उसे दूर से उड़ते हुए देखा है, नहीं न।
तो मेरे बच्चो तुमने दिवाली का मजा फिर कहाँ देखा है।
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जब मैं अपने बचपन की उन बेहतरीन यादों में खोया हुआ था,
तो पीछे से आयी एक बूढ़ी आवाज़ ने मुझे जगा दिया।
सच कहा वो बचपन वाली दिवाली, आज तक कहाँ मनाई,
ऐसी सुकून वाली दिवाली के कुछ अनदेखे अनसुने किस्से हमारे भी तो हैं।
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“न कोई फोन थे, न हमने कभी पटाखे फोड़े
दिवाली का मतलब खूब नाचना- गाना या गर्म पकौड़े। “
दिवाली की रात में बस, जमजाता था पूरा का पूरा गाँव हमारा,
लोक नृत्य से जमती महफ़िल और गीतों से गूँजता आसमान हमारा।
एक पोषाखें होती, एक जगह पर पंगत लगती,
एक ही साथ हम खाते खाना,
द्धेष- कलेश क्या होता है, हमने ऐसा कभी न जाना।
खूब खाकर, डकार लगाकर अब बारी है भेलो की ,
पूरा साल बस राह देखते अब खेलेंगे भेलो भी।
कुछ लकड़ियों के गट्ठर के दोनों सिरों पे आग लगाना,
बीच में रस्सी बाँध उन्हें सम्भलकर होता है घुमाना।
फिर कुछ ऐसा मंज़र होता है की चीर रहा हो
कोई आग का पंछी, उस अन्धकार की चादर को।
हाँ जैसे मनाओ, पर धूम मचाओ
क्योंकि फिर न आएगी बचपन वाली सुकून दिवाली।
Diwali Aur China
♥रोशनी हिंदुस्तान के आखिरी घर तक पहुंचे न पहुंचे
दीवाली की असली धूम तो वो ड्रैगन ही मनाता रहेगा .
लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां खरीद खरीद हम कर्जे में डूबते जाएंगे.
पर सुख समृद्धि की वर्षा में तो वो चाइना भीगता चला जायेगा.
जरा संभालना मेरे वतन अपनों के हाथों से रोटियां छीन जो हम ड्रैगन को खिलाने चले हैं .
सच है की भूख मिटती नहीं उसकी
डकार में श्री लंका की महक बता रही है
Diwali Poems & Environment:
आप कहतें हैं:
” पटाखे जलाओ कीटाणु भगाओ।”
और मैं सोचता हूँ कि ” क्या आप पाँचवी पास से तेज़ हैं “
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Environment And Diwali
और तू कहता है कि दीवाली सिर्फ तेरी है
पटाखे जलाकर, हवा में जहर घोलकर हक़ जताते हुये कहता है
कि दीवाली सिर्फ तेरी है
पेड़, पशु, पक्षियों का दम घोटकर, दम भरकर कहता है
कि दीवाली सिर्फ तेरी है
जरा सोच और बता :
” किन्होंने और कितने इन्सानों ने प्रभु राम का साथ दिया था
रावण को हारने में “
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और तू कहता है कि दीवाली सिर्फ तेरी है।
राम को पुजते तो काफी होंगे, पर मानते कितने हैं ?
फर्क नहीं पड़ना चाहिये,
अगर दीवाली में पटाखे बंद होजायें
क्योंकि मुझसे पहले वाली पीढ़ी को भी फर्क नहीं पड़ा
जब दीवाली में भैलो खेलना बंद हो गये।
Ram & Diwali: Hindi Poems
हमें कोई हीरो चाहिये
और हीरो को कब-किसकी मदद चाहिये।
कुछ ऐसी सोच से हम श्री राम को पूजते हैं।
रामायण गवाह है:
जब श्री राम को मदद की जरुरत पड़ती है तो
केवल पेड़, पशु, पक्षियों को ही हम तत्पर पाते हैं।
फिर भी कितनी आसानी से इन्सान दीवाली को अपने नाम कर जातें हैं।
” जलाओ चिराग ऐसे कि रौशनी दूर तक जाये
कोई दीवाली मनाने को फिर समन्दर पार कर जाये। “
” है ये मेरी दीवाली, इसे जिम्मेदारी से मनाऊँगा
पटाखों का शोर नहीं, त्यौहार की गूँज तुम तक पहुँचाऊँगा। ”
” इस पवित्र त्यौहार को पटाखों से अशुद्ध कर कैसे बदनाम करदूँ,
देवताओं की इस धरती को कैसे आम कर दूँ।”
” ये दीवाली आम नहीं, सजदा है श्री राम का
और राम केवल तेरे नहीं, वो सोच हैं प्रकृति के सम्मान का। “
Ravan & Diwali: Hindi Poems
राम प्रभु रावण ज्ञानी
पर सीता की क्यों बात नहीं
अग्नि परीक्षा तो उसने दी थी
फिर दिवाली के दीए में उसका नाम क्यों नहीं
स्त्री थी वह अबला थी
क्या बस उसकी यह पहचान थी
हां अगर तो आज एक नई पहचान से उसकी अवगत कराता हूं
रामायण का एक किस्सा मैं तुम्हें सुनाता हूं
चारों तरफ से सीता को घेर
राक्षस बस कड़वी बात सुनाते हैं।
सोलोमन आइलैंड में जैसे पेड़ों को लोग गिराते हैं।
मनोबल गिराने को उसके,
न जाने क्या-क्या स्वांग रचाते हैं।
कभी हंसते उस पर कीचड़ चरित्र पर उछलते हैं,
कभी-कभी राम का कटा सर उसे दिखाते हैं
रूठे हुए इन दिनों में, नकारात्मक विचारों में,
लोग तो क्या पेड़ भी जीना छोड़ देते हैं,
सोलोमन आइलैंड में लोग इसी तरह से तो पेड़ हटाते हैं,
सीता का वह युद्ध देखो, उसकी जरा तुम सोच देखो,
रचनात्मक कार्यों में ही अपना ध्यान लगाती है,
रावण की हर चाल को वह ऐसे धूल चट आती है,
फिर भी राम रावण युद्ध को यह दुनिया बस जपती हैं।
और सीता का वह रावण युद्ध बस अबला सा समझती है,
आज एक दिया धैर्य का अपने अंदर चलाता हूं।
सीता उसे प्रज्वलित करें अब ऐसे दिवाली मनाता हूं।
Diwali Quote:
लड़ियों से रूठ कर दीवाली है
बैठी कि आंगन में अब कोई दिया जलाता नहीं