चोर नहीं
वो चोरी उसके शब्दकोष में नहीं,
जानवर है मेरी बिल्ली, इंसानो की फितरत में अभी रमी नहीं,
मेरी गैर मौजूदगी में भी दूध में पतीले पे वो मुँह तक मारती नहीं,
चोर चोर कहते हो तुम शायद चोर तुमने अभी देखे नहीं,
विश्वास पे घात लगाए रहते हैं शुक्र करो तुम उनसे अभी मिले नहीं ।
सिखादो मुझे वो प्यार का वो तरीका
याद है मुझे अब भी वो बारिश की शाम,
तुम भीगी भागी सी, झिझकी सी, झेंपी सी,
मेरे घर के बाहर बारिश से बचने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी ।
मैं बाहर निकला तो मेरी नज़र तुम्हरी आँखों से टकरा गयी।
कहीं ये किसी नए किस्से की शुरुआत तो नहीं तब तक तो पता नहीं ।
कुछ अजीब सी गहराई थी तुम्हारी आँखों में बस डूबता ही चला गया,
पता नहीं क्या पढ़ा तुमने मेरी आँखों में जो प्यार से उठी ” म्याऊं ” ।
मौसम तो सर्द था पर न जाने क्यों मेरे ह्रदय आइसक्रीम सा पिघल गया।
मैंने तुम्हारी नकल करके कहा ” म्याऊं म्याऊं ” आजा आजा म्याऊं।
सच कहूं तो हाँ तुमने मेरे दिल के किसी कोने में घर बना लिया था ।
बस अब घर में जगह ढूंढ रहा था ।
याद है तुम्हे गुस्सा कितने जल्दी आता था
जब भी तुम्हे पकड़ने की कोशिश करता था
तुम अपनी कर्कश सी आवाज (मियूं मियूं ) से डाँट लगा देती थी ।
पर कभी पंजा मारा नहीं ।
शैतान भी तो कम नहीं थी
तुम जब भी बैठा रहता था
तुम मेरी गोद में बैठ जाती थी ।
जब मैं खड़ा रहता तुम मेरे पैरों के बीच में आजाती थी ।
पता नहीं पर प्यार करने का तरीका बड़ा अजीब था तुम्हारा ।
तुम हमेशा मेरे लैपटॉप पे चलती थी
सच बताना उससे जलती थी
न कि मैं तुमसे ज्यादा इसके साथ रहता हूँ ।
कभी तुमने इन मुर्गों या अलार्म क्लॉक की तरह
मुझे सुबह सुबह नहीं जगाया ।
कितना ज्यादा समझती थी
तुम मुझे मेरे साथ ही सोने आजाती थी मेरे सिरवाने में ।
तुम्हे पता था न मुझे कितना अच्छा लगता है
सुबह देर तक सोना ।
जब भी तुम साथ होती थी लगता था
मैं अकेला नहीं मम्मी की निकम्मा, आलसी, जैसी गालियां सुनने मैं ।
हमने मिलके कितनी ही बार नाश्ता छोड़ा है ।
क्योंकि सीधे ही दोपहर में उठते थे ।
पता हैं ये जालिम समाज मुझसे
तुम्हारी शिकायते किया करता था
और हमेशा गालियां देता था
कि मैंने तुम्हे आलसी बना दिया है ।
वो ये भी कहते हैं कि
तुम्हारे सर पर और आस पास चूहे खेलते हैं
पर तुम कुछ नहीं करते हो।
मैं हमेशा कहता हूँ
कि दुश्मनी एक जाल हैं और तुम उससे मुक्त हो ।
बंदी तो समाज हैं
जो अपनी दुश्मनी को कंधो पे
सितारे के समान सजाके चलरहा हैं।
जिन्हे वो सितारे या जिम्मेदारी समझता हैं
वो दरशल बोझ हैं ।
छोड़ो इन समझदारों के समाज में
हम दो आलसी, निककम्मे, निठल्ले, ही सही हैं ।
वादा करो बदलोगी नहीं ।
आज जब पूरा देश लॉक डाउन हुआ पड़ा हैं ,
लोगों के पैर एक जगह पे टिक नहीं रहे हैं।
डंडे खाके, पुलिस वालों की लताड़ सुनके, सोशल मीडिया में लोगों से गलियां खाके
इन समाज के लोगों को पता चल रहा हैं,
कि आलसी होना, घर पे पड़े रहना कितना मेहनत का काम हैं
हर किसी के बसकी बात नहीं ।
तुम्हारे बिना मैं ये कैसे कर पाता,
मुझे पता नहीं
मैंने कभी नाम नहीं रखा तुम्हारा क्योंकि
मैं इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चाहता था ।
पर तुमसे सीखना चाहता हूँ ” बिन शर्त किसी से प्यार करना ” ।