नया ऑफिस, नए लोग, नया माहौल पर वही पुराना मैं अपनी पुरानी आदतों के साथ : कम बोलना, अपने काम से काम रखना, किसी जगह में ऐसा रहना जैसे वहां कोई हो ही नहीं और मैं हमेशा की तरह अपने ही कंपनी को एन्जॉय करते हुए दिन बिता रहा हूँ। सब अच्छा चल रहा है पर अचानक मेरे साथ एक घटना घटी कि मैं एक कानपुरिया लड़के से जा टकराया जो की ममुझे पहले ही दिन से ऑब्सेर्वे कर रहा था बिना मेरे संज्ञान के। उसे कानपुरिया कहने कि ख़ास वजह थी जो आप सोच भी नहीं सकते हैं। “वो कानपूर का रहने वाला था ”
कानपुरिया : क्या बे बोलते काहे नहीं हो। किस बात का डर है बे कि अगर बोलोगे तो मुँह से सोने की अशर्फियाँ गिरने लगेंगी और हम उठाई के भग लेंगे।
” काफी देर से चेयर पे बैठे- बैठे कमर अकडने लगी थी तो मैं तोडा स्ट्रेचिंग करने लगा बिना ज्यादा उसकी बात पे गौर किये ”
कानपुरिया : मीठे हो। काहे सरे आम नचनिया बने फिर रहे हो। हमारे सामने हो तो मर्दों की तरह इस्ट्रॉन्ग रहो वरना कन्टाप मारके सीधा करदेंगे बता रहे हैं।
मैं : भाई अभी जाने पहचानते भी ढंग से नहीं और तुम हिंसा पे उतारू हो। अहिंसा से काम लो।
कानपुरिया : बेटा सुनो। ध्यान से सुनो: “हिंसा ही प्रकृति का सत्य है, अहिंसा तो इंसान की इंसान बनने की एक नाकामयाब कोशिश है ”
मैं: डीप हाँ। गुरु ज्ञान चो, अब आपके चरण छूने हैं।
कानपुरिया : मांगने से ये सौभाग्य नहीं मिलता।
दो चीज़ें हैं : पहला ये कामना पड़ता है और…..
मैने इन्ट्रप्ट करते हुए
दूसरा ?
कानपुरिया : यार जूते और जुराब उतारने पड़ेंगे।
मैं: ओह। स्वैग पूरा है भाई।
कानपुरिया : गाली नहीं। स्वैग दिल्ली के नाजुक लड़कों के चोंचलें हैं ज्यादा से ज्यादा फ्लॉन्ट करते हैं। कानपूर के लौंडे ये सब नहीं करते। वो मचाते हैं :>>>>”मचाते हैं “भौभौभौकाल ललल ”
:समझे :