अहम् ब्रह्मास्मि ! A Hindi Poem |
अहम् ब्रह्मास्मि ! is a Hindi poem by Kagaj Kalam on the misunderstanding of human to think himself “God.” Soon, he is going to realize when nature will turn against human. But in his stupidity and self catering pride, he is ignoring the fact.
अहम् ब्रह्मास्मि ! Hindi Poem
अहम् ब्रह्मास्मि !
मैं ही हूँ दुनिया का सबसे बडा रचनाकार
मैंने ही बांधे हैं दरिया को लांगने को पुल
नदियों को उनकी औक़ात में रखने के लिए बाँध
मेरे ही आदेश पर मुडती है नदियां जिधर चाहूँ उधर ।।
हाँ वो समय अलग था
जब मैं प्रकृति के सामने हाथ जोड़े खडा रहता
अपनी सलामती की दुआ पड़ता और क्षमा की प्रार्थना किया करता था।
पर मेरी रचनाओं ने मुझे भगवान् बना दिया
और मेरे लालच ने मुझे प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का अधिकारी ।
कौन रोकेगा मुझे ?
तू क्या तू रोकेगा हिमालय
मुझे?
तू तो बरसो से जहाँ खड़ा था
अब भी वही है।
ऊंचाइयों का रॉब किसको दिखता है
क्या ऊँचा है तू मेरे घमंड से भी ज्यादा ?
सुन रे हिमालय !
मोटी- मोटी सडकों से बांधूंगा एक दिन
तेरे मस्तक को
जिस तरह से बाँधने जा रहा हूँ ,
तेरे शरीर को अपने रेल प्रोजेक्ट्स और रोड प्रोजेक्ट्स से ।।
रुदन करेगा तू ! रोयेगा तू !
क्यूंकि मुझे पसंद नहीं
मेरे घमूंड के अलावा आकाश की ऊंचाइयों को कोई और छुए
अहम् ब्रह्मास्मि !
मैं ही हूँ दुनिया का सबसे बडा रचनाकार ।।