अरहर की दाल |Trying to fit in | Hindi Poem |
अरहर की दाल | Trying to fit in | Hindi Poem, एक हिंदी कविता जिसमे किरदार को अरहर पसंद है पर लोगों के सामने राजमा बताना पड़ता था। इस डर से की लोग उसे अलग न करदें। इस तरह की चीज़ें अक्सर हमारे साथ होती हैं और हम वो करने लगते हैं जो हमे पसंद ही नहीं। ये कविता उन चीज़ों को दर्शाती है।
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अरहर की दाल | Trying to fit in | Hindi Poem
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Trying to fit in में हमने न जाने कितने झूठ बोले हैं,
हर झूठ सच है ऐसे कई झूठ अपने से भी बोले हैं,
ये so called ” सच ” marketing का एक हिस्सा है।
Read the room का important एक किस्सा है।
बहुत मुश्किल है
समझना और समझापाना
कीमतों से पसंद का बदल जाना।
ये कुछ इस तरह से है कि :
“पसंद तो अरहर है पर लोगों को राज़मा चावल बताना,
पसंद तो है पुराने हिंदी गानों में खो जाना पर recent played list me हमेशा इंग्लिश गानों का पाया जाना,
पसंद तो है कार्टून्स देखके लौट पॉट हो जाना पर सबके सामने न्यूज़ सुनते सुनते ऐतियाद से सर हिलना,”
बस या मेट्रो में इंग्लिश नावेल के अंदर
पंचतंत्र कि कहानियां पढ़के मुस्कुराना,
जॉगिंग से बेहतर लगता है
बिन मकसद के कहीं दूर पैदल निकल जाना।
पेड लगाने और काटने की दलीलों से दूर,
मौका मिलते ही पेड़ों में चढ़ना और लिपट जाना।
“अच्छा लगता है हर छोटी – छोटी चीज़ों का मुक़्क़मल हो जाना। “
चाहता हूँ जो सच महसूस करता हूँ उसे जबान तक लाना।
हाँ -हाँ पसंद है मुझे छोटी छोटी बचकानी हरकते,
पसंद है मुझे अरहर की दाल संग भात खाना।
पर ये क्या …..!?!?!?!?
अब अरहर की दाल भी लोगों को भा रही है ,
कीमते फिर से “पसंद ” बदलने जा रही है।
कहीं – कहीं !!! ????
It is becoming another so-called “सच ” to ” Read the Room”.
Very nice